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जब बाबू छुट्टियों में अपने घर भोपाल पहुँचता है तब पहली बार नर्मदा जैसी सुन्दर ग्रामीण लड़की को देखकर उसे नर्मदा से प्रेम हो जाता है और वर्षा जैसी पढ़ी–लिखी व आधुनिक विचारों वाली शहर की लड़की को वह भूल जाता है. नर्मदा को भी धीरे–धीरे बाबू से प्रेम होने लगता है.
परन्तु वर्षा बाबू का पीछा नहीं छोड़ती. वर्षा से बाबू का मिलना-जुलना, उसका बाबू के घर पर आना नर्मदा को अच्छा नहीं लगता. इसी बीच नर्मदा के परिजनों में नर्मदा का विवाह अपनी ही जाति के लड़के ‘गोवर्धन’ से करने की चर्चा होने लगती है. जब बाबू को यह पता लगता है तो उसे बहुत दुःख होता है और नर्मदा को खोने का भय उसके मन में पनपने लगता है.
उपन्यास की भाषा सरल है तथा समाज को प्रेरणा व दिशा देने में समर्थ है. अंतिम पृष्ठ तक पाठकों को बांधकर रखना उपन्यास की विशेषता है.
नर्मदा’ – यह उपन्यास मध्य प्रदेश के बैतूल घाटी की एक सुन्दर ग्रामीण
युवती के जीवन का मार्मिक चित्रण है. ‘बाबू’ दिल्ली के आई.आई.टी. से
इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है और उसका सारा आकर्षण ‘वर्षा’ के लिए होता है
क्योंकि इनके परिवारों में इन दोनों के विवाह के विषय में चर्चा चल रही
है.
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