हमारा देश कृषि प्रधान देश माना जाता है. देश की भौगोलिक परिस्थितियां बहुत
सुंदर हैं. पर दिन – प्रतिदिन कृषि में पैदा होने वाली खाद्य वस्तुएं
महँगी क्यों हो रही हैं? ये गम्भीर प्रश्न बन गया है.
प्याज़, आलू , टमाटर, अदरक, मिर्च, धनिया इनकी फसल देश के हरेक कोने में
होती है. जितने लोग खाने वाले हैं उतने ही उत्पादन करने वाले हैं. पर
सब्ज़ियों पर हाहाकार मचना यह पूरे देश के लोगों के लिए चिंतन का विषय बन
गया है. प्याज़ तो उन दिनों भी महंगा रहता था जब स्वर्गीय इंदिरा गांधी देश
की प्रधानमंत्री थीं.
प्याज की महंगाई की असलियत
प्याज़ जून
महीने से लेकर दीपावली के महीने तक ऊँचे दामों पर बिकता है. जब प्याज़ उत्तर
भारत के लिए महाराष्ट्र से आता है तो वाहन मालिक को पांच राज्यों से चलकर
आना होता है और पांच राज्यों कीं चुंगी देनी होती है – मध्य प्रदेश,
राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरयाणा और दिल्ली. निश्चित है कि परिवहन खर्च बढ़
गया. प्याज़ की फसल मात्र तीन महीनों में तैयार की जाती है. जनवरी से मार्च
तक महाराष्ट्र में लाखों टन प्याज़ पैदा की जाती है. मार्च – अप्रैल में जब
प्याज़ की फसल आती है तो उसके भाव मात्र दो से तीन रुपये किलो होते हैं.
पश्चात् किसानों को प्याज़ को सुखा कर गोदामों में रखना होता है. प्याज़ को
सुखाने के लिए और ऊपर का छिलका निकलने के लिए हर दो महीने में गोदाम के
बाहर निकालना पड़ता है. उस समय मज़दूर मिलते नहीं और मिलते भी हैं तो उन्हें
अधिक दाम देने पड़ते हैं. इस तरह दीपावली तक दो – तीन बार प्याज़ की देखभाल
करनी पड़ती है. तब तक बिकते – बिकते प्याज़ के दाम बहुत ऊँचे हो जाते हैं.