ITC यानी Indian Tobacco Company वर्तमान समय में विश्व
की
सबसे
बड़ी
सिगरेट उत्पादन
करने
वाली
कम्पनी है. ITC का
इतिहास
सौ
वर्ष
पुराना
है. ITC की
स्थापना
वर्ष
1910 में
हुई
थी.
तब
इसका
नाम
Imperial Tobacco Company था. 1970 के
आस - पास
कम्पनी
ने
इतनी
तरक्की
कर
ली
की
Imperial
नाम
हटाकर
Indian Tobacco Company नाम रख
दिया.
वर्तमान में
इस
कम्पनी
की सभी उद्योगों से होने वाली आय 7.5 बिलियन
डॉलर्स (लगभग पचास हज़ार करोड़ रुपये)
है जिसमें से केवल सिगरेट उत्पादन से होने
वाली
आय 6 बिलियन
डॉलर्स (लगभग चालीस हज़ार करोड़ रुपये) है.
यानी 80% आय का स्त्रोत सिगरेट उत्पादन है. ऐसा
बताया
जाता
है
कि
24 अगस्त,
1910 को
कम्पनी
ने
पहला
उत्पादन
मार्केट में
लांच
किया
था
और
मुख्यालय
कलकत्ता
को
चुना
जो
आज
कोलकाता
के
नाम
से
जाना
जाता
है.
ITC ने सिगरेट उत्पादन रोका:
यह सुनकर
आश्चर्य
हो
रहा है
कि सरकार द्वारा सिगरेट
के डिब्बों के 85 प्रतिशत हिस्से पर चित्र चेतावनी अनिवार्य करने के कारण
ITC ने
सिगरेट का उत्पादन रोक दिया है. परन्तु सिगरेट कम्पनियां मात्र
शरीर
के
लिए
हानिकारक
पदार्थ
उत्पादित
कर
रही
हैं.
इसलिए
तम्बाकू या इससे जुड़े अन्य पदार्थों का सेवन करने वाले लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार द्वारा चित्र चेतावनी को अनिवार्य किया गया है.
परन्तु तम्बाकू के उत्पादन एवं सिगरेट व्यापार की दृष्टि से ITC
कम्पनी ने एक शताब्दी से ऊपर कितने परिश्रम किये और पसीना बहाया इसका शायद ही सरकार को कोई सरोकार है. पर तम्बाकू को हानिकारक समझकर पिछले 30 वर्षों
से जो हाहाकार मच रहा है वह इस सीमा तक पहुँच
चुका है कि संभवतः जल्द ही ITC के सिगरेट उत्पादन इकाईयों के प्रमुख दरवाज़े पर ताला लग जाएगा.
ITC's headquarter at Kolkata |
देश का स्वास्थ्य मंत्रालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) तथा स्वास्थ्य सुरक्षा से जुड़े अन्य संस्थान ज़ोर - शोर से यह प्रचार कर रहे हैं कि तम्बाकू का सेवन करने से लोगों की मौतें हो रही हैं. तम्बाकू का सेवन करना शरीर के लिए हानिकारक है यह सभी जानते हैं. परन्तु एक सर्वे के अनुसार 30 प्रतिशत लोग ही तम्बाकू का सेवन करते हैं. अब सरकार हेल्थ वार्निंग का जो टाइटल चला रही है वह सिगरेट उत्पादन संस्थान स्थापित होने से पहले ही चला लेती तो स्वास्थ्य मंत्रालय को इस प्रकार के कदम उठाने में जोखिम नहीं आता. हमारे देश का स्वास्थ्य मंत्रालय एवं उनके मंत्रीगण स्वास्थ्य के प्रति कितने ईमानदार हैं यह किसी से छुपा नहीं है. किन्तु विश्व में चर्चित देश की सिगरेट कंपनियां उत्पादन बंद कर रही हैं, यह सुनकर देश के व्यापार-उद्योग को बहुत बड़ा झटका लगा है.
ITC की मार्केटिंग रणनीति:
मैं लक्ष्मण राव ITC की मार्केटिंग रणनीति अपनाकर ही एक साहित्यकार के रूप में उभर कर आया हूँ. आज
मुझे एक चायवाला साहित्यकार के नाम से जाना जाता है. परन्तु 30 वर्ष
पहले मुझे पानवाला उपन्यासकार के नाम से जाना जाता
था. क्योंकि
जिस ITO के
पास विष्णु दिगंबर मार्ग पर मैं आज चाय बेच रहा हूँ, उसी स्थान पर मैं पान – सिगरेट बेचता था.
ITC का सेल्समैन साइकिल पर आकर मुझे सिगरेट देता
था. एक दिन वह सेल्समैन कुछ जल्दी में दिखाई दिया तो मैंने इसका कारण पूछा. वह कहने लगा – “लक्ष्मण राव जल्दी करो, आज हमारे पीछे ITC कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर की कार खड़ी है और वह साहब
यह देखना चाहते हैं कि हम सिगरेट की सप्लाई किस तरह से करते हैं.”
दूसरे दिन वही सेल्समैन मुझे बताने लगा कि मैनेजिंग डायरेक्टर साहब ने डिस्ट्रीब्यूटर्स् को यह आदेश दिया है कि साइकिल पर सिगरेट बेचने के लिए सेल्समैन बढ़ाओ. जितनी अधिक साइकिलें होंगी उतनी अधिक सिगरेट बिकेगी. क्योंकि साइकिल छोटी - छोटी गलियों में जा सकती है झुग्गी - बस्ती में जा सकती है और सिगरेट के चाहने वाले
तक पहुँच सकती है. हम कम्पनी की तरफ से हर साइकिल वाले को 90 रुपये
प्रतिमाह अलग से देंगे. यह बात 1978 की
है.
यह छोटा सा नुस्खा मैंने अपने दिमाग में बिठाकर रखा और जब मेरी पुस्तकें छपने लगीं और बिक नहीं रही थीं तब मैं किताबें लेकर साइकिल से ही दिल्ली के अलग - अलग
क्षेत्रों में स्थित स्कूलों में जाने लगा और अपनी पुस्तकें स्कूल के पुस्तकालय में खरीदने हेतु देने लगा. मैं ITO से
30-40 किलोमीटर दूर - दूर तक जाने लगा और आज मुझे देश में हिंदी भाषा का साहित्यकार कहा जाता है.
सिगरेट कंपनियां बंद हो रही हैं इसका मुझे दुःख नहीं है. मैंने जीवन में कभी सिगरेट व शराब का सेवन नहीं किया. परन्तु जिस मेहनत से ITC कम्पनी ने लाखों
लोगों को रोज़गार दिए, अरबों
– खरबों रुपयों
का सरकार को कर (tax) दिया, देश में विदेशी सैलानियों के लिए
पांच सितारा होटल बनवाये, उस
संस्थान को
बचाने का कोई विकल्प सरकार के पास है क्या, यह
शोध का विषय है.
कम्पनी के सिगरेट उत्पाद:
1977 में
जब
मैंने
पान
- सिगरेट
बेचना
आरम्भ
किया
था, उस
समय
कम्पनी
के
ब्रांड
जैसे
विल्स
नेवी
कट
का
पैकेट
एक
रुपये
बीस पैसे
में
बेचता
था.
गोल्ड
फ्लेक्स
किंग
एक
रूपया
पचास
पैसे, क्लासिक सात रुपये
(बीस
सिगरेट
का
पैकेट),
इंडिया
किंग दस रुपये
में (बीस सिगरेट
का
पैकेट),
कैपस्टन
सिगरेट
प्रति
पैकेट
एक
रुपये
का
था, 90 पैसे
या
95 पैसे
में
मैं खरीदता
था
और
एक
रुपये
में
बिकता
था.
ब्रिस्टल
नाम
के
सिगरेट
की
डिमांड
बहुत
थी, परन्तु
इस
सिगरेट
के
पैकेट
का
वितरण
दिल्ली
में
नहीं
था.
बम्बई
से
आने
वाले
लोग
ब्रिस्टल सिगरेट
मांगते
थे
क्योंकि
ब्रिस्टल
मुंबई
में
बहुत
बिकती
थी.
उस समय भी हर सिगरेट के पैकेट पर यह सूचना अवश्य लिखी जाती थी
– ‘धूम्रपान
करना
स्वास्थ्य
के
लिए
हानिकारक
है’.
आश्चर्य
की
बात
यह
थी
कि
हर
वर्ष
मार्च
में
वार्षिक
बजट
में
सिगरेट
के
दाम
बढ़
जाते
थे
और
यही
सिगरेट
दीपावली
के
बाद
ब्लैक
में
बिकना शुरू
हो
जाता
था.
सरकारी
कार्यालयों
में
काम
करने
वाले
30%
वरीष्ठ
अधिकारी
भी
सिगरेट
का
स्टॉक
घर
में
भर
लेते
थे और मार्च
महीने
के
बाद
उसे
बेचकर
मुनाफा
कमाते
थे.
दीपावली
से
मार्च
महीने
तक
सिगरेट
का
जो
ब्लैक
रेट
होता था वही रेट बजट
में सिगरेट का मूल रेट
निश्चित
कर
दिया
जाता
था.
ITC का विभिन्न व्यापारिक क्षेत्रों में विस्तार:
ITC ने देश में सौ के करीब होटल्स बनवाये हैं और वो भी सिर्फ सिगरेट की कमाई पर तथा अलग – अलग क्षेत्रों में भी अपना व्यापार बढ़ाया है जैसे की इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, कृषि व्यवसाय, उपभोक्ता वस्तुएं, आदि .
यह सुनकर दुःख हो रहा है कि अब इसी कम्पनी को स्वास्थ्य सुरक्षा के नाम पर उजाड़ा जा रहा है. यदि कम्पनी का शत प्रतिशत उत्पादन उन देशों में निर्यात किया जाए जिन देशों को ITC के उत्पादों में रुचि है तो हज़ारों लोगों का रोज़गार सुरक्षित रखा जा सकता है. शायद सरकार ऐसा ही सोचेगी. क्योंकि व्यापार बढ़ाए जाते हैं, उजाड़े नहीं जाते हैं.
ITC Maurya Hotel in New Delhi |
यह सुनकर दुःख हो रहा है कि अब इसी कम्पनी को स्वास्थ्य सुरक्षा के नाम पर उजाड़ा जा रहा है. यदि कम्पनी का शत प्रतिशत उत्पादन उन देशों में निर्यात किया जाए जिन देशों को ITC के उत्पादों में रुचि है तो हज़ारों लोगों का रोज़गार सुरक्षित रखा जा सकता है. शायद सरकार ऐसा ही सोचेगी. क्योंकि व्यापार बढ़ाए जाते हैं, उजाड़े नहीं जाते हैं.
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