1980 के दरम्यान हमारे देश में मदर टेरेसा का नाम बहुत चर्चित था। मदर टेरेसा ने समाज सेवा की, ऐसी सेवा हर कोई नहीं कर सकता। मदर टेरेसा का कोलकाता में एक आश्रम था और उस आश्रम में वे बेसहारा लोगों को ले आती थीं और उनकी चिकित्सा करती थीं।
वे बेसहारा लोग कौन थे? जो लोग बेघर थे और सड़क पर रहते थे, उनको न खाना मिलता था न पानी, फिर वे बीमार पढ़ गए। उन्हें न दवाई मिल रही थी न कोई साधन। अंततः वे सड़क पर ही बेसहारा अवस्था में दम तोड़ रहे थे। ऐसे बेसहारा लोगों की सेवा के लिए मदर टेरेसा ने बहुत कष्ट उठाये।
मदर टेरेसा ने उत्तर दिया - "मैं सभी धर्म के लोगों से प्रेम करती हूँ।"
पत्रकार ने एक और प्रश्न किया - "आप के लिए सबसे अधिक आनंदित स्थान कौन सा है, जहाँ आप बार - बार जाकर ख़ुशी महसूस करती हैं?"
मदर टेरेसा ने उत्तर दिया - "मुझे कालिघाट पसंद है, जहाँ खुशी के लिए खुशी से जीते हैं। यह बहुत सुन्दर विचारधारा है कि भारत देश के गरीब लोग अपने परिवार के साथ आनंद के साथ रहते हैं।"
कालीघाट कोलकाता की एक गली का नाम है जहाँ मदर टेरेसा का आश्रम है। जो गरीब लोग हैं उनमें से भी गरीब लोग जिनके लिए भोजन नहीं, पानी नहीं, बीमारी के इलाज के लिए दवाई नहीं, उन लोगों को मदर टेरेसा अपने आश्रम में ले आती थीं। उन्होंने उस स्थान पर कोलकाता के इतिहास में 54 हज़ार लोगों को आश्रय दिया। जिनमें से 23 हज़ार लोग मृत्यु को स्वीकार कर गए। यह 23 हज़ार लोग वे लोग थे जो कई दिनों से भूखे - प्यासे थे और किसी बीमारी के कारण बिस्तर पर पढ़े थे।
पत्रकार ने एक और प्रश्न किया - "भविष्य के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं?"
मदर टेरेसा ने कहा - "जो दिन गुज़र रहा है मैं उसी के बारे में सोचती हूँ। कल कभी लौटकर आएगा नहीं और आने वाले कल का भी कोई भरोसा नहीं।"
मदर टेरेसा का मिशन सत्य पर आधारित था। उन्होंने मानवीय सेवा सहजता से की। जिसके लिए न तो कोई प्रलोभन था न ही आर्थिक दृष्टिकोण। एक विशेष सामाजिक सेवा थी। मदर टेरेसा ने इसे गॉड गिफ्ट कहा। उन्हें भारत सरकार ने भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया था। उनका कार्य भविष्य के लिए प्रेरणादायक था जिन्हें लोग आज भी याद करते हैं। 5 सितम्बर, 1997 को उनका निधन हो गया।
मदर टेरेसा जैसे बहुत से महानुभव हमारे देश में थे, आज भी हैं और आगे भी रहेंगे। पर समय बदल रहा है। मनुष्य के प्रति मनुष्य की सहानुभूति नहीं रही है। पूरे समाज का चित्र अब बदल चुका है।