At AAM Foundation, New Delhi
I was invited to AAM Foundation (Freedom English Academy), Vasant Vihar, New Delhi on 26th October, 2015.
Invited as a Guest Speaker by Shri Ram College of Commerce (SRCC), Delhi University
I was invited as a Guest Speaker by Shri Ram College of Commerce (SRCC),
Delhi University on 26th October, 2015 at the inauguration ceremony
of 'LIFT' (Leadership Initiative For Transformation) -
a cell on Ethical Leadership.
A warm welcome by the students of JSS Mahavidyapeetha
I was invited as a guest speaker at JSS Mahavidyapeetha, Noida Sec-62, Uttar Pradesh
RAMDAS
RAMDAS
A riveting account of a young man's journey from living on the edge to social acceptability.
Last 4 copies left on Paytm. Order your copy now.
https://goo.gl/4fNVM1
Last 4 copies left on Paytm. Order your copy now.
https://goo.gl/4fNVM1
Romantic Novel NARMADA - Kindle Edition
At the time of solitude, I went where Narmada was sleeping. She got
awake and sat up. She neither got scared nor nervous but she immediately
got off the bed. She kept both her hands tied on her chest. I was
standing so close to her that my face was near her face. We could sense
each other’s breath.
I called out her name and could not speak
anything else. After a moment, I started - “I love you Narmada…I like to
be with you…I want to marry you.”
रिज़र्व बैंक की भूमिका
बैंकिंग
सुविधा आज के परिवेश में सफल योजना मानी जाती है. आज देशभर में सौ से अधिक बैंकों
की स्थापना हो चुकी है तथा बैंकों की लाखों शाखाएं देशभर में कार्य कर रही हैं. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की स्थापना 1 अप्रैल सन् 1935 को एक अंग्रेज़ द्वारा की गयी थी.
इस
बैंक का मुख्य कार्यालय भारत देश की वाणिज्य राजधानी मुंबई में है. बैंक का
विशालकाय भवन सम्पूर्ण देश के वित्त, अर्थ एवं व्यापार को चलाता है अर्थात् देश के हर छोटे-बड़े बैंकिंग खाते रिज़र्व बैंक के
पब्लिक डीलिंग कक्ष से गुज़रते हैं. भारत देश के बड़े–बड़े शहरों
में रिज़र्व बैंक की शाखाएं हैं.
यह निश्चित है कि रिज़र्व बैंक की भूमिका बैंकिंग क्षेत्र में विशिष्ट रूप से मानी जाती है. रिज़र्व बैंक बहुत सारे काम करता है, परन्तु सबसे बड़ा महत्व का काम है रुपये छापना और उसे जारी करना. परन्तु इस कार्य के लिए रिज़र्व बैंक को अपनी कस्टडी में विशिष्ट प्रकार की रकम, सोना व विदेशी मुद्रा डिपाज़िट के रूप में रखनी पड़ती है. इसका निर्णय बैंक सदस्यों एवं बोर्ड द्वारा 1957 में लिया गया. इसी कारण इस बैंक पर अन्य बैंकों को विश्वास करना पड़ता है जबकि यह सारा कार्य भारत सरकार के अधीन है और भारत सरकार इसके लिए एक गवर्नर नियुक्त करता है. जिस दिन इस बैंक की स्थापना हुई थी उस दिन इस बैंक के पहले गवर्नर एक अंग्रेज़ व्यक्ति नियुक्त हुए थे. उनका नाम था ‘सर ऑस्बॉर्न स्मिथ’.
First Governor of RBI - Sir Osborne Smith |
उसके तीन वर्ष बाद अर्थात् सन् 1938 में बैंक ने नोटों का चलन कैसे अमल में लाया जाए इस पर निर्णय लिया और बाद में रुपये छापने लगे. पश्चात् लोगों को धन की महत्ता समझ में आने लगी. परन्तु इसका विपरीत परिणाम होने लगा. अगले सात वर्षों में अर्थात् सन् 1945 में देश के धनी परिवार सट्टेबाज़ी करने लगे और सट्टेबाज़ी का प्रमाण बढ़ता गया जिसमें रुपयों का काला बाज़ार होने लगा. इसके लिए रिज़र्व बैंक के बोर्ड ने पर्याप्त उपाय सोचकर उचित निर्णय लिया और जनवरी 1946 में बाज़ार में चलने वाले 500, 1000 व 10,000 के बड़े नोट बंद कर दिए गए.
!! ENTER TO WIN A COPY OF THIS NOVEL !!
Enter to win 1 of 4 copies available
जब बाबू छुट्टियों में अपने घर भोपाल पहुँचता है तब पहली बार नर्मदा जैसी सुन्दर ग्रामीण लड़की को देखकर उसे नर्मदा से प्रेम हो जाता है और वर्षा जैसी पढ़ी–लिखी व आधुनिक विचारों वाली शहर की लड़की को वह भूल जाता है. नर्मदा को भी धीरे–धीरे बाबू से प्रेम होने लगता है.
परन्तु वर्षा बाबू का पीछा नहीं छोड़ती. वर्षा से बाबू का मिलना-जुलना, उसका बाबू के घर पर आना नर्मदा को अच्छा नहीं लगता. इसी बीच नर्मदा के परिजनों में नर्मदा का विवाह अपनी ही जाति के लड़के ‘गोवर्धन’ से करने की चर्चा होने लगती है. जब बाबू को यह पता लगता है तो उसे बहुत दुःख होता है और नर्मदा को खोने का भय उसके मन में पनपने लगता है.
उपन्यास की भाषा सरल है तथा समाज को प्रेरणा व दिशा देने में समर्थ है. अंतिम पृष्ठ तक पाठकों को बांधकर रखना उपन्यास की विशेषता है.
नर्मदा’ – यह उपन्यास मध्य प्रदेश के बैतूल घाटी की एक सुन्दर ग्रामीण
युवती के जीवन का मार्मिक चित्रण है. ‘बाबू’ दिल्ली के आई.आई.टी. से
इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है और उसका सारा आकर्षण ‘वर्षा’ के लिए होता है
क्योंकि इनके परिवारों में इन दोनों के विवाह के विषय में चर्चा चल रही
है.
Follow the link to enter this book giveaway:
देश के बच्चों की प्राथमिक शिक्षा हेतु इंदिरा गांधी के प्रयास
इंदिरा गांधी जहां भी जाती थीं वहां पर अपने देश की कमज़ोरियां
कभी नहीं बताती थीं और न ही किसी देश के आगे आर्थिक मदद के लिए हाथ फैलाती हुई
दिखाई देती थीं. इंदिरा गांधी समझ रही थीं कि देश के लिए क्या करना है. सन 1951 में देश में पढ़ने
वाले बच्चों की संख्या लगभग 3 करोड़ थी, पर
बीस वर्षों बाद सन 1971 में यह संख्या लगभग
9 करोड़ हो चुकी थी. ग्रामीण क्षेत्रों
में गरीब बच्चे विद्यालय में पड़ने जाना कठिन काम समझते
थे जबकि कृषि में काम करना उन्हें अच्छा लगता था. इसके लिए इंदिरा गांधी प्रयास कर
रही थीं कि बच्चों को घरों से निकल कर विद्यालय जाने के लिए प्रोत्साहन मिले.
परन्तु बच्चे व उनके माता – पिता विरोध करते थे.
इस विषय में इंदिरा गांधी का यही कहना था कि जो बच्चे अपने
भविष्य को नहीं समझ पा रहे हैं और उनके माता – पिता बच्चों को
शिक्षा की तरफ ले जाने के लिए उत्साहित नहीं हैं तो ऐसे में क्या प्रयत्न किये
जाएँ? परन्तु फिर भी
इंदिरा गांधी ने अपने प्रयासों में कमी नहीं आने दी. उन्होनें गांव - गांव में प्राथमिक विद्यालय बनाने
की योजना बनायी और बच्चों को पुस्तकों को उनका साथी बताने लगीं. इंदिरा गांधी को इस बात पर भी गर्व था कि
बच्चे शिक्षा की तरफ भले ही कम ध्यान दे रहे हों, फिर भी भारतीय समाज
में प्राचीन संस्कृति की झलक दिखाई देती थी, जिसमें
सभ्यता, आदर्शवाद, ईमानदारी व एक – दूसरे
का मान – सम्मान रखने की
भावना थी. इंदिरा गांधी इस बात पर गर्व करती थीं कि हमारे देश के इतिहास को इसी
प्राचीन सभ्यता ने सजीव बना रखा है.
- --
वैचारिक रचना ‘प्रधानमंत्री’
से, पृष्ठ संख्या - 77
प्रिवीपर्स पर रोक
समय से पहले स्वतंत्र भारत में पहली बार लोकसभा भंग हुई थी और यह चर्चा
का विषय था. क्योंकि संसद में विशेष मुद्दे उठाये गए थे और उन मुद्दों को
इंदिरा गांधी सरकार ने पारित किया था जिसमें प्रिवीपर्स का विशेष मुद्दा
था. प्रिवीपर्स का अर्थ – देशभर के वे धनी लोग जिन्हें राज्यों में राजा,
ज़मीनदार, उच्च घरानों के प्रतिनिधि आदि ऐसे लोगों को सरकार से या अंग्रेज़ी
शासनकाल से हर वर्ष अनुदान दिया जा रहा था. इस प्रकार का अनुदान जिन्हें
मिल रहा था वे लोग आर्थिक परिस्थिति से पहले से ही सुदृढ़ थे.
इस पर रोक लगनी चाहिए ऐसा पूरे देश में राजनीतिक क्षेत्र में आक्रोश था.
यह बिल संसद में रखा गया और इंदिरा गांधी ने इसे बहुमत से पास किया. इस बिल
को सर्वसम्मति से पास तो किया गया परन्तु पक्ष और विपक्ष के कुछ सांसदों
को यह रास नहीं आया क्योंकि वे भी प्रिवीपर्स के सहभागी थे. उसके बाद
कांग्रेस के ही कुछ सांसद इंदिरा गांधी के विरुद्ध इस बिल के प्रति अपनी
प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगे और जब इंदिरा गांधी को यह लगने लगा की मेरी ही
पार्टी के सांसद मुझसे बगावत करने लगें तो कोई उचित कदम उठाना चाहिए.
इसलिए इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने की सिफारिश की और
लोकसभा भंग करके नए चुनाव घोषित किये गए.
- वैचारिक रचना 'प्रधानमंत्री' से
- वैचारिक रचना 'प्रधानमंत्री' से
Subscribe to:
Posts (Atom)