समय से पहले स्वतंत्र भारत में पहली बार लोकसभा भंग हुई थी और यह चर्चा
का विषय था. क्योंकि संसद में विशेष मुद्दे उठाये गए थे और उन मुद्दों को
इंदिरा गांधी सरकार ने पारित किया था जिसमें प्रिवीपर्स का विशेष मुद्दा
था. प्रिवीपर्स का अर्थ – देशभर के वे धनी लोग जिन्हें राज्यों में राजा,
ज़मीनदार, उच्च घरानों के प्रतिनिधि आदि ऐसे लोगों को सरकार से या अंग्रेज़ी
शासनकाल से हर वर्ष अनुदान दिया जा रहा था. इस प्रकार का अनुदान जिन्हें
मिल रहा था वे लोग आर्थिक परिस्थिति से पहले से ही सुदृढ़ थे.
इस पर रोक लगनी चाहिए ऐसा पूरे देश में राजनीतिक क्षेत्र में आक्रोश था.
यह बिल संसद में रखा गया और इंदिरा गांधी ने इसे बहुमत से पास किया. इस बिल
को सर्वसम्मति से पास तो किया गया परन्तु पक्ष और विपक्ष के कुछ सांसदों
को यह रास नहीं आया क्योंकि वे भी प्रिवीपर्स के सहभागी थे. उसके बाद
कांग्रेस के ही कुछ सांसद इंदिरा गांधी के विरुद्ध इस बिल के प्रति अपनी
प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगे और जब इंदिरा गांधी को यह लगने लगा की मेरी ही
पार्टी के सांसद मुझसे बगावत करने लगें तो कोई उचित कदम उठाना चाहिए.
इसलिए इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने की सिफारिश की और
लोकसभा भंग करके नए चुनाव घोषित किये गए.
- वैचारिक रचना 'प्रधानमंत्री' से
- वैचारिक रचना 'प्रधानमंत्री' से
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