चुनाव प्रक्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य
प्रक्रिया है. देश में जो प्रशासनिक व्यवस्था है वह चुनाव प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है. राज्यों में जब भी कोई उथल-पुथल होती है या नागरिकों को
जितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उसके लिए जनता चाहती है कि जल्दी से जल्दी चुनाव हों और भ्रष्ट नेताओं को बदलकर ईमानदार एवं कर्मठ नेता
का चुनाव करके प्रशासन को और सुदृढ़ बनाया जाए.
छायाचित्र : सौजन्य टाइम्स ऑफ इंडिया |
चुनावी दंगल में मतदाताओं की भागीदारी
प्रशासन सुदृढ़ बने और चुनी गयी सरकार जनता के
हितों के लिए काम करे, यह तभी सम्भव है जब
देश के शत् प्रतिशत मतदाता अपना मतदान करें. परन्तु विधानसभा के लिए कुल मिलाकर 50 से 55 प्रतिशत और लोकसभा के लिए तो 30 से 35 प्रतिशत ही मतदान होता है. पिछले कुछ चुनावों
में इन आंकड़ों में थोड़ा सुधार अवश्य हुआ है, परंतु फिर भी मतदाताओं को अपने मतदान के अधिकार
के प्रति और जागरूक होना होगा।
विश्वास की कमी मुख्य कारण
जनता के मन में चुनाव प्रक्रिया और प्रशासन में विश्वास का
न होना एक मुख्य कारण है. जो नेता अपना विश्वास खो बैठे उसे पुनः
स्थापित करने के लिए दलों के पास बुद्धिजीवी प्रतिनिधि नहीं हैं. जो प्रतिनिधि बनना चाहते हैं वे या तो घिसे-पिटे चेहरे हैं या फिर धनी व्यक्ति चुनाव
लड़ना चाहते हैं और इसमें क्षेत्र और मोहल्ले के भ्रष्ट और बदमाश लोग उनकी मदद करने में लगे रहते हैं. इसलिए पढ़े-लिखे, बुद्धिजीवी, धनी और अधिकृत कॉलोनी में रहने वाले लोग मतदान करने नहीं जाते. क्योंकि उन्हें लगता है
कि चुनाव प्रक्रिया अब बेईमानी का खेल बन कर रह गया है. लोगों की यह सोच बिलकुल सही है.
छायाचित्र : सौजन्य mid-day.com
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कम मतदान से मिलता है भ्रष्टाचार को बढ़ावा
अक्सर चुनावों में कम मतदान होने से भ्रष्ट नेता
चुनकर आता है और आगे वह भ्रष्ट बन कर ही काम करता है. ऐसे भ्रष्ट नेताओं पर दबाव
डालने के लिए अधिक से अधिक मतदान करने की आवश्यकता है. भ्रष्ट नेता ‘अ’ पार्टी का भी है और ‘ब’ पार्टी का भी है. झुग्गी-झोपड़ी और गरीबी रेखा से नीचे
घोषित किये गए लोग ही उन्हें चुनकर लाते हैं. इसलिए वे नेता उन लोगों के लिए ही काम करते हैं. वे जानते हैं कि वे इसलिए चुनकर आये हैं क्योंकि
झुग्गी-झोपड़ी के लोगों ने उन्हें वोट दिया है.
इसलिये उनकी सोच बदल जाती है और फिर वह बिना
किसी दबाव के काम करते हैं जिसमें फंड का दुरुपयोग करना, अपराधियों को सुरक्षा देना व उनका बचाव करना, जो लोग उनके चुनाव के लिए काम आये थे उनकी
आर्थिक व सरकारी मदद करना शामिल है. फिर वह नेता पूरे क्षेत्र पर ध्यान नहीं देते हैं. ऐसे नेताओं की कार्य पद्धति बदलने के लिए जब तक क्षेत्र के
सभी लोग मतदान नहीं करेंगे तब तक प्रशासन बदल नहीं सकता.
अवश्य करें मतदान
हम सभी को अपने मतों का प्रयोग करके चुनाव को शत् प्रतिशत बदलने का प्रयास करना चाहिए. जिस पार्टी का जो नेता आप चाहते हैं उसे आप वोट डालिये. वे
सभी नेता देश के नागरिक हैं और चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त हैं. इसलिए उस क्षण तक वे जनता के प्रतिनिधि हैं. उन पर किसी प्रकार का आरोप या
प्रत्यारोप नहीं लगा सकते.
आपका कीमती वोट किसी भी नेता का मूल्यांकन कर
सकता है. जो पार्टी, जो नेता आप चुनेंगे वो जीत कर आएगा और यदि शत् प्रतिशत वोटिंग की जाती है तो उस जीते हुए प्रतिनिधि की सोच बदल सकती है और वह
हर क्षेत्र के हर व्यक्ति के लिए काम कर सकता है, जैसे कि – बिजली, पानी, सुरक्षा, शिक्षा, पेंशन, बाग़-बगीचे, सड़कें, आदि-आदि.
चुनाव प्रक्रिया को त्रुटिपूर्ण समझकर चुनाव के
दिन घर में ही रहने का प्रयास न करें. अपितु परिवार के साथ घर के बाहर निकलकर अपना कीमती वोट डालें और चुनाव प्रक्रिया को सफल बनाइये.
- साहित्यकार लक्ष्मण राव
इंदिरा गांधी का 1969 से 1972 का जो प्रधानमंत्री कार्यकाल था उस अवधि में प्रशासन व्यवस्था पर आधारित यह वैचारिक रचना तैयार की गयी है. 1969-1972 का यह कार्यकाल इंदिरा गांधी के लिए चुनौतीपूर्ण था. उस समय की स्तिथि बहुत ही गंभीर व कठिन थी, जिसे इंदिरा गांधी ने समाज के सामने स्पष्ट करके भविष्य के लिए सफल योजनाएं बनाने का प्रयत्न किया.
इंदिरा गांधी का 1969 से 1972 का जो प्रधानमंत्री कार्यकाल था उस अवधि में प्रशासन व्यवस्था पर आधारित यह वैचारिक रचना तैयार की गयी है. 1969-1972 का यह कार्यकाल इंदिरा गांधी के लिए चुनौतीपूर्ण था. उस समय की स्तिथि बहुत ही गंभीर व कठिन थी, जिसे इंदिरा गांधी ने समाज के सामने स्पष्ट करके भविष्य के लिए सफल योजनाएं बनाने का प्रयत्न किया.
इस पुस्तक में इंदिरा
गांधी के कार्यकाल का सन्दर्भ देकर प्रधानमंत्री पद के व्यक्ति विशेष को
सरल शब्दों में पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है. वस्तुतः यह रचना
उच्चकोटि की है तथा राजनीतिज्ञ, उद्यमी, प्राध्यापक, अध्यापक एवं छात्र -
छात्राओं के लिए पढ़ने योग्य है.
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mast hay
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