झारखंड पूर्व में बिहार प्रांत का ही भाग
था। सन 2000 में भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में बिहार का बंटवारा हुआ और अब झारखंड
को अलग प्रांत बने हुए सत्रह वर्ष पूरे हो चुके हैं। परंतु इस प्रांत की जनता को यहाँ
विकास कहीं पर भी नज़र नहीं आ रहा है। झारखंड का इतिहास जब भी चर्चा का केंद्रबिंदु
होता है तो यहाँ का मीडिया सदैव यह प्रश्न उठाता रहता है कि झारखंड के विकास के
लिए और कितना समय लगेगा?
महाराष्ट्र, कर्नाटक
और गुजरात की सड़कें ही उन राज्यों का प्रगतिशील विकास का आईना है। उद्योग, कृषि और जनता की मेहनत तथा साथ-साथ कुशल प्रशासन व्यवस्था ने महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात को प्रगतिशील राज्य बनाया है, जबकि इन राज्यों में भी संसाधन नाम मात्र के ही हैं।
इसके विपरीत इस राज्य में अनगिनत संसाधन
हैं, यहाँ की ज़मीन में खनीज़ सम्पदा प्रचुर मात्रा में है। फिर भी यहाँ कोई
विकास नहीं दिखाई दे रहा है, क्योंकि सम्पूर्ण रूप से उस
खनीज़ पदार्थ का उपयोग नहीं किया जा रहा है।
उद्योग जगत से यहाँ का विकास अवश्य हो सकता है। परंतु औद्योगिक संभावनाएं होने के पश्चात भी झारखंड सरकार व प्रशासन की कोई पहल दिखाई नहीं दे रही है। विशेषज्ञों का यह मानना है कि औद्योगिक विकास के लिए झारखंड अभी भी एक प्रतिशत भी आगे कदम बढ़ाता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है।
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
प्रश्न झारखंड की सड़कें बनाने का है।
शहरों को गाँव से जोड़ने का काम सड़कें ही करती हैं। जब तक गाँव के रास्ते पक्की
सड़कों द्वारा शहरों तक नहीं पहुंचेंगे तब तक गाँव का भी विकास नहीं होगा। जब गाँव
के लोग गाँव छोड़कर शहरों में बसने लगेंगे, तब गाँव उजड़ेंगे और शहर नर्क बन जाएंगे।
यही अवस्था आज पूरे भारत देश की बन गयी है। झारखंड के निवासी जो सोच रहे हैं वे
सही सोच रहे हैं। झारखंड में सड़कें बनाने के लिए पत्थरों की कमी नहीं है। सड़कें
आसानी से बन सकती हैं।
इसके अतिरिक्त पीने का पानी, बिजली, परिवहन व्यवस्था व न्याय व्यवस्था से भी यहाँ के लोग खुश नहीं हैं। लोगों
का मानना यह है कि सभी व्यवस्थाओं के होने के पश्चात भी प्रशासन में इच्छाशक्ति का
अभाव क्यों है? यह सबसे बड़ा कारण है।
लोगों का यह भी मानना है कि सरकार फण्ड की
राशि भी खर्च नहीं कर पा रही है। जबकि फण्ड बहुत है, परंतु उसे समय पर खर्च
नहीं किया जा रहा है।
झारखंड का भूगोल
उद्योगपति वर्ग अपना धन उसी राज्य में
खर्च करता है जहां उसे अपनी पूंजी डूबने की आशंका नहीं होती। यह भी कटाक्ष किया
जाता है कि उद्योगों के लिए कोई भी ज़मींदार अपनी ज़मीन देने के लिए तैयार नहीं है, परंतु
प्रशासनिक व्यवस्था का यह कहना गलत है। राज्य में उद्योग लगाने के लिए भूमि
अधिग्रहण की कोई समस्या नहीं है। उद्योग के लिए बंजर ज़मीन का प्रयोग किया जाए तथा
उपजाऊ ज़मीन फसल उगाने के लिए प्रयोग में लाई जाए।
यही काम तो महाराष्ट्र एवं
गुजरात के प्रशासन व्यवस्था ने किया और प्रशासन को भी ज़मींदारों व किसानों ने
भरपूर सहयोग दिया। झारखंड के एक समाचार पत्र ने हैदराबाद शहर का उदाहरण देते हुए लिखा
- “हैदराबाद के चारों तरफ पहाड़ी क्षेत्र है। पहाड़ी क्षेत्र को काटकर खूबसूरत सड़कें
बनाई गई हैं और सड़कों के दोनों तरफ पक्के मकान बनाए गए हैं। ऐसी परियोजना झारखंड
में भी अपनाई जा सकती है।”
सुरक्षा का प्रश्न
झारखंड की मूल समस्या क्या है? यहाँ
पर प्रमुखता से नकसलवाद की समस्या है। निवेशक यहाँ पर धन खर्च करने व लाभ कमाने के
इच्छुक तो हैं, परंतु सुरक्षा के लिए उनकी चिंता अधिक है। उद्योगपतियों
को झारखंड में उनके अपहरण होने का डर है। यहाँ तक कि सड़कें बना रहे मज़दूर व
अधिकारियों का भी अपहरण किया जाता है। यदि सरकार श्रमिक मज़दूरों, निवेशकों व उद्योगपतियों की जवाबदारी नहीं लेगी तो अपना जीवन व्यर्थ करने
के लिए झारखंड की धरती पर कौन रहेगा? झारखंड में अनेक
परियोजनाएं एवं उद्योग बंद पड़े हैं। जिन उद्देश्यों के लिए झारखंड अलग हो गया, वे उद्देश्य अभी भी अधूरे रह गए हैं। आज जहाँ नागरिकों की आवश्यकताएँ
पूरी करनी चाहिए वहाँ नेता अपना धरातल बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
झारखंड के कुछ युवाओं के व्यक्तिगत विचार इस प्रकार हैं-
1. झारखंड राज्य में एक विश्वसनीय सरकार के
गठन की आवश्यकता है और राज्य के सभी लोगों को एकजुट होकर यहाँ का विकास करने के
लिए वचनबद्ध होना चाहिए।
2. शिक्षा प्रणाली विकास की महत्वपूर्ण कड़ी
है, जो कि झारखंड में नहीं है। राज्य में 65 प्रतिशत अशिक्षित लोग हैं, जिन्हें रोज़गार, कृषि और सामाजिक ज्ञान का अनुभव
नहीं है।
3. राज्य में सब कुछ है पर सिंचाई की
स्थिति नहीं के बराबर होने के कारण उपजाऊ भूमि भी बंजर घोषित की जा रही है। पर समय
से पहले नदी, नाले, पहाड़ व जंगलों की उपयोगिता समझकर
विकास मार्ग ढूँढना चाहिए।
4. यहाँ उद्योग व्यवसाय स्थापित तो होते हैं
पर अधिक समय तक चल नहीं पाते, जिस कारण जनता को लाभ नहीं मिल पाता। सरकार
को इस व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए।
5. यहाँ खनिज़ सम्पदाओं का प्रचुर मात्रा में भण्डार
है। इसका उपयोग कर हर व्यक्ति को रोज़गार मिल सकता है व हर घर में चूल्हा जल सकता
है।
उपरोक्त बिन्दुओं पर ध्यान देकर सभी को एक
साथ काम करना होगा, तभी विकास संभव होगा और झारखंड का इतिहास बदलेगा।
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