देवभूमि
उत्तराखंड - इस पुस्तक का विमोचन नई दिल्ली के हिन्दी भवन के संगोष्ठी सभागार में
14 अप्रैल, 2017 को सम्पन्न हुआ।
पुस्तक का प्रकाशन ‘सन्मति पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स’ द्वारा किया गया। 96 पृष्ठों की पुस्तक की छपाई आकर्षक है।
यह
पुस्तक मनोज कामदेव जी का शोध कार्य है ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा। भारत देश की
देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड राज्य की पृष्ठभूमि, लोगों के रहन-सहन एवं खानपान पर विशेष
प्रस्तुति लेखक कामदेव जी ने की है।
अन्य
राज्यों के लोग उत्तराखंड को भले ही गरीब पृष्ठभूमि का प्रांत कहकर टाल देते हैं, परंतु दक्षिण भारत के चार राज्य - आंध्र
प्रदेश, कर्नाटका, तमिल नाड व केरल तथा
मध्य भारत के गुजरात व महाराष्ट्र के लोग इस प्रांत की भूमि की पूजा श्रद्धा से
करते हैं। यहाँ का एक ग्लास पानी पीने के लिए इन प्रान्तों के लोग तरसते हैं।
उत्तराखंड
के दर्शन करने के लिए लोग तो भारत के हर कोने से आते हैं, परंतु धन के अभाव से या अपने रोजगार के
कारण कई लोगों का उत्तराखंड देखने का सपना, सपना बनकर ही रह जाता है। ऐसे लोगों को यदि लेखक कामदेव की पुस्तक ‘देवभूमि उत्तराखंड’ पढ़ने को मिल जाए तो उनके लिए
उत्तराखंड का आधा दर्शन हो गया, ऐसा समझना चाहिए।
मेरी उत्तराखंड यात्रा
मुझे
भी 25 अप्रैल, 2015 को उत्तराखंड के घुड़दौड़ी
क्षेत्र में जी.बी. पंत इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने अपने कॉलेज में अतिथि
वक्ता के तौर पर भाषण करने के लिए बुलाया था। देहरादून के जौली ग्रांट एयरपोर्ट पर
उतरने के पश्चात कार में बैठकर जी.बी. पंत इंजीनियरिंग कॉलेज तक की 124 किलोमीटर की यात्रा से ऐसी
अनुभूति हो रही थी जैसे स्वर्गलोक के दर्शन हो रहे हों।
ऊंचे-ऊंचे
पहाड़, चारों तरफ हरियाली, लबालब
पानी से भरी हुईं तेज़ गति से बहती नदियां, यह सब देखकर मुझे हमराज़
फिल्म का गीत याद आ रहा था – ‘नीले गगन के तले, धरती का प्यार पले’। वहाँ एक दिन गेस्ट हाउस में
ठहरने के पश्चात वापसी यात्रा में भी फिर वही सुखानूभूति हुई।
इतनी
सुंदर जगह परंतु उत्तराखंड के आर्थिक परिस्थिति से गरीब लोगों को अपनी स्वर्ग जैसी
धरती छोड़कर मात्र रोज़गार के लिए पड़ोस के प्रांत में जाना पड़ता है। परंतु वहाँ के
लोगों का धार्मिक एवं स्वाभाविक रुझान देखकर ऐसा लगता है जैसे इन्हें किसी चीज़ की
आवश्यकता नहीं है, यह अपने आप
में बहुत धनी हैं।
उत्तराखंड की पृष्ठभूमि
लेखक
कामदेव ने अपनी पुस्तक में बहुत सारी जानकारियां दी हैं जैसे कि उत्तराखंड के दो
भाग हैं - कुमाऊँ व गढ़वाल। कुमाऊँ क्षेत्र में कम से कम दस प्रमुख भाषाएँ हैं। छह
कुमाऊँ संभाग हैं – अल्मोड़ा,
बागेश्वर, नैनीताल, उधम सिंह नगर, पिथौरागढ़ और चंपावत। इसी तरह ईष्ट देवताओं के नाम,
खानपान व व्यंजन, मुख्य मिठाइयाँ,
त्योहार व मेले, लोगों का रहन-सहन,
वेषभूषा, लोक नृत्य, प्रमुख वाद्ययंत्र
आदि जानकारियाँ पुस्तक में सम्मिलित की गयी हैं।
इसी
तरह दूसरे भाग गढ़वाल के प्रमुख हिमशिखर, प्रमुख हिमनदियां, झीलें,
हवाई अड्डे, रेल्वे स्टेशन, बस अड्डे, आदि-आदि। उत्तराखंड के चार धाम हैं यमुनोत्री,
गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ।
फिल्म उद्योग का उत्तराखंड के प्रति आकर्षण
गंगोत्री
व यमुनोत्री को तो सिनेमा के माध्यम से देश के करोड़ों लोगों ने देखा होगा और
मनमोहक सौन्दर्य का आनंद उठाया होगा। क्योंकि 1984 में फिल्म निर्माता राजकपूर की
फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ रिलीज़
हुई थी। इस फिल्म की शूटिंग हरिद्वार से लेकर हार्शिल व गंगोत्री तक हुई है।
राजकपूर ने अपने कैमरे द्वारा सम्पूर्ण उत्तराखंड का दृश्य इस फिल्म में दर्शाया
है। इस फिल्म की कहानी के दो पहलू थे - एक गंगाजी के पानी की सफाई और दूसरा एक
पहाड़ी लड़की गंगा (मंदाकिनी) की शहर के लड़के के साथ प्रेम कहानी।
राजकपूर ने इस
फिल्म के माध्यम से भारत देश के लोगों का उत्तराखंड दर्शन करवाया। फिल्मी दर्शकों
ने एक बार नहीं, पाँच-पाँच बार यह फिल्म देखी है और उसके बाद
उत्तराखंड व हरिद्वार देखने का मन बना लिया। एक तरफ फिल्म की रात-दिन प्रशंसा हो
रही थी तथा दूसरी तरफ उत्तराखंड की धरती पर यात्रियों की संख्या बढ़ रही थी।
लेखक
कामदेव ने उत्तराखंड के दर्शनीय पर्यटन स्थलों का इस तरह वर्णन किया है कि फिर एक बार उस ओर पैर निकालने की इच्छा मन में जागृत
होती है।
किसी
भी व्यक्ति द्वारा पुस्तकें लिखना व उसे प्रकाशित करना या करवाना अपने आप में बड़ी उपलब्धी
है। लेखक बनने का मन तो सारे ही बना लेते हैं परंतु पुस्तक छपकर हाथ में दिखाई
देना, यह एक मकान बनाने के बराबर है। श्री मनोज
कामदेव को मेरी शुभकामनाएँ ! लिखते रहिए और प्रकाशित करते रहिए।
रचनाकार का परिचय
श्री
मनोज कामदेव का जन्म 30 अक्टूबर, 1973 को
गाँव खैराकोट, उत्तराखंड में हुआ। उनकी शिक्षा भगत सिंह
कॉलेज, दिल्ली से हुई है। वर्तमान में डी.आर.डी.ओ. में
वरिष्ठ प्रशासनिक सहायक के पद पर कार्यरत हैं। उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं
जिनमें अधिकतर काव्यसंग्रह हैं। (Email - manoj_732003@yahoo.co.in)
- साहित्यकार लक्ष्मण राव
आपके लेख हमेसा ही प्रेरणा का स्रोत होते है बहुत अच्छी जानकारी दी है। आप इसे भी पढ़ सकते है देवभूमि उत्तराखंड
ReplyDelete