खनक आखर की - पुस्तक परिचय

11 मई, 2017 को नॉलेज ग्रुप पब्लिकेशन्स के प्रकाशक श्री मनोज जौहरी जी से भेंट हुई। बातचीत करते - करते उन्होंने अपने हाथ में जो पुस्तक थी, वह मुझे भेंट करनी चाही। 


मैंने कहा – “रखिए, आप के काम की होगी।”

कहने लगे – “आप इसे पढ़ेंगे तो हमें बहुत खुशी होगी।” 


उनके आग्रह पर मैं वह पुस्तक लेकर पढ़ने लगा। पुस्तक का नाम था “खनक आखर की”



पुस्तक के अंतिम पृष्ठ (बॅक कवर) पर छ्त्तीस चित्र थे जो उस पुस्तक में लिखी रचनाओं के कवियों व कवयित्रियों के थे। फोटो देखने के पश्चात ऐसा लगा कि संभवतः मैं सब से ही परिचित हूँ। धीरे-धीरे यह प्रथा बढ़ती जा रही है कि कवियों के साझा संग्रह अधिक से अधिक प्रकाशित हो रहे हैं। 


“खनक आखर की” इस काव्य संग्रह के सभी कवि-कवयित्री उच्च शिक्षित हैं और साथ-साथ आर्थिक रूप से सम्पन्न भी हैं। इस काव्य संग्रह में 36 लोगों की कविताओं को स्थान दिया गया है जिनमें 20 महिलाएं एवं 16 पुरुष हैं। 


ऋषिकेश वैद्य इतिहास में पी॰ एच॰ डी॰ कर चुके हैं तथा वे मोहन राकेश सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं। उनकी गज़लें इस काव्य संग्रह में प्रकाशित हैं। 


सागर सैनी प्रसिद्ध अभिनेता हैं। इनकी छोटी-छोटी कविताएं इस पुस्तक में प्रकाशित हैं। 


सुरेन्द्र कौशिक ज्योतिष परामर्शदाता हैं। इनकी कविताएं साझा संग्रह में प्रकाशित हो चुकी हैं। 


डॉक्टर संजीव सिकरोरिया एम॰बी॰बी॰एस॰, एम॰डी॰ हैं। एक चिकित्सक होने के पश्चात भी मन की जिज्ञासा कविता के माध्यम से प्रस्तुत की है। यह बहुत बड़ी बात है। इनकी कविता “अश्वमेध का घोड़ा” बहुत अच्छी लगी -  


“जब बूढ़ा हो जाएगा यह घोड़ा
उसे मार देंगे तलवार घोंप के
और ढूँढेंगे नया घोड़ा
मज़बूत और तरुण



वस्तुतः प्राणियों के साथ ऐसा ही होता है। जब तक वह सुंदर लगता है या जब तक वह उपयोगी है तब तक वह प्यारा है। जब उम्र होने पर वह मरता है तो उसे कफन भी नहीं ओढ़ाया जाता। बहुत सुंदर कविता है।


नीरजा मेहता एक स्थापित कवयित्री का गौरव प्राप्त कर चुकी हैं। एम॰ए॰, बी॰एड॰, एल॰एल॰बी॰ यह इनकी डिग्रियाँ हैं। अपने जीवन में शिक्षिका भी रह चुकी हैं। शिक्षा व उम्र का अनुभव लेखनी में अत्यंत काम आता है और इसका लाभ निश्चित रूप से नीरजा मेहता को मिला है। 


काव्य का माध्यम तीनों कालों में होता है – भूतकाल, भविष्य काल एवं वर्तमान काल। इन्होंने अपनी कविता “चले आना तुम” के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति दर्शाई है। ऐसा लगता है जैसे कोई दुल्हन अपने पति के लिए अपने विचार व्यक्त कर रही हो-
 

सजाई फूलों से है सेज
तुम्हारी याद में मैंने 
किया है सोलह शृंगार
दबे पाँव चले आना तुम।



इसी तरह इस काव्य संग्रह में सभी कवियों एवं कवयित्रियों ने अपने-अपने विचार व भावनाएँ काव्य के माध्यम से प्रस्तुत की हैं। जैसे कि श्रीमति मीनाक्षी सुकुमारन, अंजु जिंदल, उमा द्विवेदी, प्रमिला भाटी, भूपेन्द्र राघव, सचिन मेहरोत्रा, सुनील कुमार अरोरा, कृष्ण शरण पटेल, उमेश यादव, डॉ॰ मंजु कछावा, दिलीप कुमार मेवाड़ा, भगवती प्रसाद व्यास, सविता वर्मा, आस्था अग्रवाल, विनीता परमार, डॉ॰ अनुराधा शर्मा, प्रद्युम्न कुलश्रेष्ठ, डॉ॰ गीता सिंह, डॉ॰ ज्योति सिंह, लक्ष्मी थपलियाल, मणि बेन द्विवेदी, निखिल कुमार, डॉ॰ पिंकी केशवानी बोरकर, पूनम आनंद, पूनम सिंह, राज मालपाणी, रामकृष्ण शर्मा, रश्मि सिन्हा, सत्या शर्मा, रूपल जौहरी व विनीत द्विवेदी, ऐसे 36 काव्य रचनाकारों की कविताएं “खनक आखर की” इस पुस्तक में प्रकाशित हुई हैं। 


पुस्तक के अंतिम कवि विनीत द्विवेदी ने कविता के माध्यम से बहुत अच्छे विचार व्यक्त किये हैं। उन्होंने लिखा है – 


मैं एक हवा का झोंका था,
जो कभी तुम्हारे आँगन से एक दिन होकर गुज़रा था।



बहुत बढ़िया...इस कविता में एक सुंदर रहस्य का आभास होता है।              
                                                                                       

सभी कवियों एवं कवियित्रियों का एक-एक पृष्ठ उनका जीवन परिचय फोटो के साथ प्रकाशित किया है। 


पुस्तक में प्रकाशित कविताओं के अक्षरों का टाइप थोड़ा बड़ा होना चाहिए था। क्योंकि पचास वर्ष की उम्र के बाद के पाठकों की आँखें अवश्य कमज़ोर होती हैं। छोटे अक्षरों को पढ़ने में कठिनाई न हो, इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए। 


पुस्तक की छपाई सुंदर है व पेपर तथा जिल्द की गुणवत्ता भी बढ़िया है। 


कभी एक समय सौ किलोमीटर के दायरे में एक कवि या एक लेखक होता था। अब एक किलोमीटर के दायरे में सौ लेखक या कवि हो गए हैं। हम कह सकते हैं कि अब साहित्य विकास की ओर जा रहा है। परंतु विकास के साथ-साथ उतना ही रोना-धोना बढ़ गया है। “पुस्तकें बिकती नहीं हैं” - यह कारण सबसे ऊपर है। 


परंतु मैं यह कहना चाहता हूँ कि पुस्तक प्रकाशित होने तक लेखकों, कवियों या प्रकाशकों के जो प्रयास हो रहे हैं उसकी प्रशंसा होनी चाहिए। अनेक तरह के कष्ट झेलने के पश्चात भी पुस्तकें प्रकाशित की जा रही हैं, यह एक बड़ी उपलब्धि है।
- साहित्यकार लक्ष्मण राव

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