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स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कविता नए रचनात्मक सरोकार



23-24 मार्च, 2017 को दिल्ली विश्वविद्यालय के पी॰जी॰डी॰ए॰वी॰ कॉलेज (सांध्य) में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ था। यह आयोजन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सौजन्य से था। 


इस संगोष्ठी का विषय था – स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कविता नए रचनात्मक सरोकार। इस विषय पर बड़े आकार की पुस्तक भी प्रकाशित हुई थी और उसके चौथे भाग का विशेष अंक प्रकाशित कर पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया था। 

प्रकाशक संस्थान का नाम था साहित्य संचय तथा संयोजक एवं सम्पादक थे डॉ॰ हरीश अरोड़ा जी। श्री हरीश अरोड़ा जी पी॰जी॰डी॰ए॰वी॰ कॉलेज (सांध्य) में प्राध्यापक हैं।

स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कविता नए रचनात्मक सरोकार’, इस 216 पृष्ठ की पुस्तक को पढ़कर मुझे ऐसा लगा कि हिन्दी भाषा का स्तर बहुत ऊंचा है और हिन्दी भाषा के विद्वान निरंतर प्रयास में रहते हैं। वस्तुतः वर्तमान में हिन्दी भाषा विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से निकलकर देश के जन-जन तक पहुंचने का प्रयास कर रही है। श्री हरीश अरोड़ा जी ने अपने सम्पादकीय में लिखा है –“पुराने प्रतिमानों और विचारों की पृष्ठभूमि पर खड़ी कविता नई अवधारणा को लेकर अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रही है।” 

साथ-साथ उन्होंने एक बहुत बड़े विद्वान का नाम लेते हुए कहा - “टॉलस्टॉय ने कहा था कि दिन-प्रतिदिन प्रत्येक वस्तु एवं जीवों में निरंतर परिवर्तन हो रहा है, परंतु आवश्यकता मात्र इतनी ही है कि अपने को निश्चित एवं कायम रखने के लिए उसकी नीव सुदृढ़ बनाना आवश्यक है।” 

विशाल आकार की इस पुस्तक में 57 विद्वानों ने लेख लिखकर अपने विचार व्यक्त किए हैं। इनमें कुछ विश्वविद्यालय के प्राध्यापक हैं तो कुछ हिन्दी भाषा विभाग के शोधार्थी भी हैं। विशेष बात यह है कि जिन्होंने लेखों के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए हैं, उनमें से कुछ विद्वान तो उर्दू भाषी हैं। यह जानकर व पढ़कर मुझे बहुत खुशी हुई की उर्दू भाषी विद्वान लोग भी हिन्दी भाषा को दिल से जोड़कर रखने की आस्था रखते हैं। 

गुलशन बानो ने आपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है – “समकालीन कवि स्वतन्त्रता के बाद बदले हालातों को बखूबी समझ चुका है। जिस व्यक्ति के पास धन है वही शक्तिशाली है।” डॉ॰ गुलशन बानो असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं। 

ज़रीना दीवान ने लिखा है – “स्त्री विमर्श की क्रांति यूं ही नहीं आई। इसके लिए स्त्रियों को अपने कदम बढ़ाने के लिए बरसों बीत गए।” ज़रीना दीवान जामिया मिलिया इस्लामिया में शोधार्थी हैं। 

डॉ॰ नाजिश बेगम ने लिखा है -  “समकालीन हिन्दी कविताओं में स्त्री जीवन की पीड़ा एवं संघर्ष व्यक्त करते हुए कुछ अनसुलझे पहलुओं पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है। डॉ॰ नाजिश बेगम अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ से हैं। 

अंबरीन आफताब ने लिखा है – “सन 1960 के पश्चात ही कविता में परिवर्तन के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।” अंबरीन आफताब भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से हैं।” 

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के डॉ॰ मुनिल कुमार वर्मा जी लिखते हैं – “नवगीत की परिभाषा क्या है? नवगीत हिन्दी कविता की विकासशील परंपरा है। नव यह शब्द सभी अपरिभाषित विशेषताओं के बिलकुल निकट है।”

जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज से डॉ॰ निशा मलिक कहती हैं – “आज का साहित्य जब जीवन के यथार्थ को व्यक्त करना चाहता है तो कवि को सजगता तथा विशेष अनुभवों के साथ अपने काव्य को तथ्यों एवं संदर्भ के साथ रखना पड़ता है।” 

विवेकानंद कॉलेज से डॉ॰ ओमवीर सिंह ने अज्ञेय का बिम्ब विधान प्रस्तुत करते हुए लिखा है – “बिम्ब की कोई जाति या प्रकार ऐसा नहीं है जो उनकी रचनाओं में प्राप्त न होता हो।”

विवेकानंद कॉलेज की डॉ॰ पूनम जी स्मृति की परिभाषा रेखांकित करते हुए कहती हैं – “स्मृति को ज़िंदा रखने का सबसे सुंदर एवं जीवंत माध्यम कविताएं हैं।” 

स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज से डॉ॰ राकेश जी स्त्री विमर्श के संबंध में कहते हैं - “भारतीय समाज में बेटी के जन्म पर खुशी न मनाए जाने का कारण दहेज प्रथा है। इस सबसे बड़े कारण से ही कन्या भ्रूण हत्या को अधिक बढ़ावा मिला है।” 

इस पुस्तक में सभी विद्वानों ने बहुत सुंदर व बहुत अच्छा लिखा है। विशेषतः प्रत्येक रचनाकार ने रचना समाप्त होने के बाद संदर्भ सूची भी प्रस्तुत की है जो एक संस्मरण एवं साभार के लिए आवश्यक है। 

सभी लेखों के बाद की संदर्भ सूची पढ़कर ऐसा ज्ञात होता है कि हिन्दी साहित्य की पृष्ठभूमि विशाल रूप धारण  कर चुकी है। 

संदर्भ सूची में पुस्तकों के नाम तथा उन पुस्तकों के रचनाकारों एवं पुस्तक कहाँ से प्रकाशित की गई, उस प्रकाशन संस्थान का नाम देकर पाठकों लिए यह जानकारी दी है कि साहित्य का आकार बहुत बड़ा है। जितना पढ़ोगे उतना ही कम है और जो प्राप्त है उसे अवश्य पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है। 

श्री हरीश अरोड़ा जी का बहुत-बहुत अभिनंदन जिन्होंने उच्चकोटी के रचनाकारों द्वारा लिखित लेखों को संकलित कर पुस्तक को एक नया रूप दिया। जिन विद्वानों ने स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कविता नए रचनात्मक सरकोर इस पुस्तक में लेख लिखा है उनके नाम हैं:
आशा रानी, अंजली जोशी, भावना, चारु रानी, दीपा, देविन्दर सिंह, ऋषिकेश सिंह, ज्योति, कंचन शर्मा, कांता देवी, कविता बिष्ट, कुमार धनंजय, कुसुम सिंह, लक्ष्मी देवी, महेश चंद, मंजरी गुप्ता, मनीष ओझा, मनोज सतीजा, मोहसीना बानो, नीरू मान, प्रवीण देवी, प्रिया कौशिक, प्रियंका सिंह, रमेश कुमार, रश्मि शर्मा, रवि कुमार, सगीर अहमद, संतोष कुमार भारद्वाज, सरोज कुमारी, सीमा शर्मा, श्रवण कुमार, शौर्यजीत, श्रुति रंजना मिश्रा, स्नेहलता, सोनम खान, सुनील कुमार यादव, स्वाती मौर्या, विशाल कुमार यादव, विष्णु, सरस्वती मिश्र, मीना शर्मा, अभिषेक विक्रम, नेहा, हीना कुमारी, अशोक कुमार, मिलन बिश्नोई, गुंजन कुमार झा, चन्द्रकान्त तिवारी। 
   
हिन्दी भाषा के प्रति जिज्ञासा एवं अभिव्यक्ति प्रस्तुत करने हेतु आप सब को हार्दिक शुभेच्छा। 


- साहित्यकार लक्ष्मण राव

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स्वप्न दर्पण - पुस्तक परिचय



श्री नितिन कलाल जी का काव्य संग्रह “स्वप्न दर्पण” का विमोचन 6 मई, 2017 को कनाट प्लेस के ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर में किया गया। इस पुस्तक का विमोचन मेरी अध्यक्षता में हुआ। पुस्तक का प्रकाशन माय बुक्स पब्लिकेशन्स द्वारा किया गया है। 


नितिन का यह पहला काव्य संग्रह है। वस्तुतः उनकी यह पहली ही रचना है। पहली-पहली रचना में आकार व रूप भले ही नया-नया या प्राथमिक अवस्था में दिखाई देता हो, परंतु शब्दों में, वाक्य रचना में या स्पष्टीकरण में युवा अवस्था की झलक साफ-साफ दिखाई देती है। 



हर युवा के जीवन में एक कहानी होती है, कुछ संस्मरण होते हैं कुछ अपमान या कड़वाहट होती है। परंतु हर युवा लिख नहीं पाता है जो नितिन कलाल ने लिखकर अपने मन की अभिव्यक्ति पुस्तक के रूप में प्रस्तुत की। 

श्री नितिन कलाल कहते हैं – “मेरी लिखी हुई कविताएं मेरी व्यक्तिगत भावनाएँ हैं। मैं वही लिखता गया जो मैंने वास्तविकता में अनुभव किया।” ग़ालिब साहब को वे प्रेरणा का स्त्रोत मानते हैं। 




प्रेम - यह प्रक्रिया उम्र के साथ हर युवा के जीवन से जुड़ जाती है। हर युवा किसी न किसी युवती से प्रेम की इच्छा रखता है। कोई सफल हो जाता है और कोई नहीं हो पाता। बहुत से तो अपनी कमज़ोर आर्थिक परिस्थिति या माता पिता का आचरण देखकर प्रेम की तरफ झुके ही नहीं। यह भी जीवन का एक हिस्सा है। 

नितिन कलाल की तरह लाखों नवयुवक अपने प्रेम को कलम से ही लिखते रहे। वे सोच भी रहे हैं कि गालिब साहब की पुस्तकों की तरह उनके विचारों को भी पुस्तक का रूप मिले। 

किन्तु नितिन कलाल का यह सपना श्री मूलचंद जी की प्रकाशन संस्था माय बुक्स द्वारा संभव हुआ। पुस्तक का प्रकाशन होना लेखक के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।



बहुत से कवि या लेखक आज भी तरस रहे हैं कि उनकी पुस्तक कब प्रकाशित होगी। किन्तु किसी लेखक ने या कवि ने कभी घबराना नहीं चाहिए। समय आते ही उनकी पुस्तक प्रकाशित हो जाएगी और नितिन कलाल की तरह उनका भी पुस्तक प्रकाशित करने का सुंदर सपना पूरा हो जाएगा। 

कवि या लेखक अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास करे। असंभव कुछ नहीं है। नितिन ने अपनि कविता संग्रह में एक कविता प्रेम के आधार पर लिखी है। इस कविता का नाम है – “वो मेरा इंतज़ार करे”।
 है कोई ऐसा भगवान
उनसे मुझे मिलवा दे...
मोहब्बत में मेरी जो
दुनिया को भुला दे।

एक कविता उनकी यह भी है-
तुम भी तो नायाब मुमताज़ सी हो
क्यों होश–ओ-सब्र नहीं रहता
एक तुम्हारे सिवाय
किसी का ख्याल नहीं आता।

असली प्रेम तो यही है। शायद नितिन को और भी लड़कियां चाहती होंगी, परंतु नितिन उन्हीं को याद कर रहे हैं जिन्हें वे चाहते हैं। 

नितिन ने अपनी कविताओं में अपने विचारों को स्पष्ट किया और उन संस्मरणों को याद किया जिन्हें वे कभी भूल नहीं सकते हैं। 

नितिन कलाल का काव्य संग्रह पढ़कर मैं उन्हें सुझाव देना चाहता हूँ। उनका 76 पृष्ठों का काव्य संग्रह “स्वप्न दर्पण” पढ़कर यह प्रतीत होता है कि अभी लेखनी में उनकी शुरुआत है। भाषा पर कमांड नहीं है। 

भाषा का अधिकतर प्रयोग उर्दू शब्दों में किया गया है। परंतु उनमें निष्कर्ष नहीं निकाल पा रहा है। आपने जो कविता लिखी है उसमें किसी एक काल का संदर्भ नहीं है। पर आप जब भी कविता लिखें तो भूतकाल को लेकर लिखें, तभी उन कविताओं में यथार्थ दिखाई देगा जैसे कि – मैंने यह देखा था; मैंने ऐसा अनुभव किया था; मुझे यह मालूम नहीं था; मैं तो आगे बढ़ रहा था; आदि। यह वर्णन भूतकाल का है।

आप वर्तमान में भी लिख सकते हैं, परंतु पूरी कविता में किसी एक ही काल का संदर्भ या विश्लेषण होना चाहिए। एक कविता का मैं उदाहरण देना चाहता हूँ। कवि कहता है –
मैं फटे हुए कपड़े पहनकर
सोना बेच रहा था
पर मेरी दुकान पर
एक भी ग्राहक नहीं आ रहा था

परंतु जब में सोना पहनकर
फटे हुए कपड़े बेचने लगा
तो भीड़ कम नहीं हो रही थी

श्री नितिन को मेरी शुभकामनाएँ ! आगे बढ़िए और अपने सपनों को साकार करिए !

- साहित्यकार
लक्ष्मण राव

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खनक आखर की - पुस्तक परिचय

11 मई, 2017 को नॉलेज ग्रुप पब्लिकेशन्स के प्रकाशक श्री मनोज जौहरी जी से भेंट हुई। बातचीत करते - करते उन्होंने अपने हाथ में जो पुस्तक थी, वह मुझे भेंट करनी चाही। 


मैंने कहा – “रखिए, आप के काम की होगी।”

कहने लगे – “आप इसे पढ़ेंगे तो हमें बहुत खुशी होगी।” 


उनके आग्रह पर मैं वह पुस्तक लेकर पढ़ने लगा। पुस्तक का नाम था “खनक आखर की”



पुस्तक के अंतिम पृष्ठ (बॅक कवर) पर छ्त्तीस चित्र थे जो उस पुस्तक में लिखी रचनाओं के कवियों व कवयित्रियों के थे। फोटो देखने के पश्चात ऐसा लगा कि संभवतः मैं सब से ही परिचित हूँ। धीरे-धीरे यह प्रथा बढ़ती जा रही है कि कवियों के साझा संग्रह अधिक से अधिक प्रकाशित हो रहे हैं। 


“खनक आखर की” इस काव्य संग्रह के सभी कवि-कवयित्री उच्च शिक्षित हैं और साथ-साथ आर्थिक रूप से सम्पन्न भी हैं। इस काव्य संग्रह में 36 लोगों की कविताओं को स्थान दिया गया है जिनमें 20 महिलाएं एवं 16 पुरुष हैं। 


ऋषिकेश वैद्य इतिहास में पी॰ एच॰ डी॰ कर चुके हैं तथा वे मोहन राकेश सम्मान भी प्राप्त कर चुके हैं। उनकी गज़लें इस काव्य संग्रह में प्रकाशित हैं। 


सागर सैनी प्रसिद्ध अभिनेता हैं। इनकी छोटी-छोटी कविताएं इस पुस्तक में प्रकाशित हैं। 


सुरेन्द्र कौशिक ज्योतिष परामर्शदाता हैं। इनकी कविताएं साझा संग्रह में प्रकाशित हो चुकी हैं। 


डॉक्टर संजीव सिकरोरिया एम॰बी॰बी॰एस॰, एम॰डी॰ हैं। एक चिकित्सक होने के पश्चात भी मन की जिज्ञासा कविता के माध्यम से प्रस्तुत की है। यह बहुत बड़ी बात है। इनकी कविता “अश्वमेध का घोड़ा” बहुत अच्छी लगी -  


“जब बूढ़ा हो जाएगा यह घोड़ा
उसे मार देंगे तलवार घोंप के
और ढूँढेंगे नया घोड़ा
मज़बूत और तरुण



वस्तुतः प्राणियों के साथ ऐसा ही होता है। जब तक वह सुंदर लगता है या जब तक वह उपयोगी है तब तक वह प्यारा है। जब उम्र होने पर वह मरता है तो उसे कफन भी नहीं ओढ़ाया जाता। बहुत सुंदर कविता है।


नीरजा मेहता एक स्थापित कवयित्री का गौरव प्राप्त कर चुकी हैं। एम॰ए॰, बी॰एड॰, एल॰एल॰बी॰ यह इनकी डिग्रियाँ हैं। अपने जीवन में शिक्षिका भी रह चुकी हैं। शिक्षा व उम्र का अनुभव लेखनी में अत्यंत काम आता है और इसका लाभ निश्चित रूप से नीरजा मेहता को मिला है। 


काव्य का माध्यम तीनों कालों में होता है – भूतकाल, भविष्य काल एवं वर्तमान काल। इन्होंने अपनी कविता “चले आना तुम” के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति दर्शाई है। ऐसा लगता है जैसे कोई दुल्हन अपने पति के लिए अपने विचार व्यक्त कर रही हो-
 

सजाई फूलों से है सेज
तुम्हारी याद में मैंने 
किया है सोलह शृंगार
दबे पाँव चले आना तुम।



इसी तरह इस काव्य संग्रह में सभी कवियों एवं कवयित्रियों ने अपने-अपने विचार व भावनाएँ काव्य के माध्यम से प्रस्तुत की हैं। जैसे कि श्रीमति मीनाक्षी सुकुमारन, अंजु जिंदल, उमा द्विवेदी, प्रमिला भाटी, भूपेन्द्र राघव, सचिन मेहरोत्रा, सुनील कुमार अरोरा, कृष्ण शरण पटेल, उमेश यादव, डॉ॰ मंजु कछावा, दिलीप कुमार मेवाड़ा, भगवती प्रसाद व्यास, सविता वर्मा, आस्था अग्रवाल, विनीता परमार, डॉ॰ अनुराधा शर्मा, प्रद्युम्न कुलश्रेष्ठ, डॉ॰ गीता सिंह, डॉ॰ ज्योति सिंह, लक्ष्मी थपलियाल, मणि बेन द्विवेदी, निखिल कुमार, डॉ॰ पिंकी केशवानी बोरकर, पूनम आनंद, पूनम सिंह, राज मालपाणी, रामकृष्ण शर्मा, रश्मि सिन्हा, सत्या शर्मा, रूपल जौहरी व विनीत द्विवेदी, ऐसे 36 काव्य रचनाकारों की कविताएं “खनक आखर की” इस पुस्तक में प्रकाशित हुई हैं। 


पुस्तक के अंतिम कवि विनीत द्विवेदी ने कविता के माध्यम से बहुत अच्छे विचार व्यक्त किये हैं। उन्होंने लिखा है – 


मैं एक हवा का झोंका था,
जो कभी तुम्हारे आँगन से एक दिन होकर गुज़रा था।



बहुत बढ़िया...इस कविता में एक सुंदर रहस्य का आभास होता है।              
                                                                                       

सभी कवियों एवं कवियित्रियों का एक-एक पृष्ठ उनका जीवन परिचय फोटो के साथ प्रकाशित किया है। 


पुस्तक में प्रकाशित कविताओं के अक्षरों का टाइप थोड़ा बड़ा होना चाहिए था। क्योंकि पचास वर्ष की उम्र के बाद के पाठकों की आँखें अवश्य कमज़ोर होती हैं। छोटे अक्षरों को पढ़ने में कठिनाई न हो, इसलिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए। 


पुस्तक की छपाई सुंदर है व पेपर तथा जिल्द की गुणवत्ता भी बढ़िया है। 


कभी एक समय सौ किलोमीटर के दायरे में एक कवि या एक लेखक होता था। अब एक किलोमीटर के दायरे में सौ लेखक या कवि हो गए हैं। हम कह सकते हैं कि अब साहित्य विकास की ओर जा रहा है। परंतु विकास के साथ-साथ उतना ही रोना-धोना बढ़ गया है। “पुस्तकें बिकती नहीं हैं” - यह कारण सबसे ऊपर है। 


परंतु मैं यह कहना चाहता हूँ कि पुस्तक प्रकाशित होने तक लेखकों, कवियों या प्रकाशकों के जो प्रयास हो रहे हैं उसकी प्रशंसा होनी चाहिए। अनेक तरह के कष्ट झेलने के पश्चात भी पुस्तकें प्रकाशित की जा रही हैं, यह एक बड़ी उपलब्धि है।
- साहित्यकार लक्ष्मण राव